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संवेदना
संवेदना
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जि़्ान्दगी की यह कैसी अजीब-सी कहानी है।
थोड़ी कही-अनकही थोड़ी जानी-अनजानी है।।

अब तो आँखो में सदा रहती है एक चुभन सी क्योंकि
आजकल इनमें गुनगुने आँसू नहीं, सिर्फ ठंडा पानी है।।

बचपन से ही इन पर गढ़ने लगते हैं हवस के दांत
औरत की खून से सनी हुई यह कैसी नई कहानी है।।

जिन्दगी के पैरों तले रौंदे जाते हैं जज्बात रोजाना
दौड़ती मगर डगमगाती और हांफती जिन्दगानी है

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